कैसे पार लगेगी प्रशासन की नैया?

रूद्र  नारायण यादव/१० मई २०१०
कुल मंगाई गयी ४६२ नावों में से २५ बुरी तरह क्षतिग्रस्त मिलीं,१०० नाव अभी भी लापता.क्या जिला प्रशासन नाव मालिकों को हर्जाना देगी? भाड़े की राशि पर अब भी विवाद कायम.उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा नाव मालिकों को.तब जाकर प्रशासन आई हरकत में.क्या फिर अगर इतिहास ने अपने को दोहराया तो फिर से मिल पायेगा नाव मालिकों का पूर्ण सहयोग?
                 वर्ष २००८ के कोशी बाढ़ के कहर को भुला पाना आसान नहीं है.प्रशासन ने बाढ़ में फंसे लोगों को बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. उस संकट की घड़ी में जिला आपदा प्रबंधन विभाग ने वैशाली, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, दरभंगा, मुंगेर, बेगुसराय, समस्तीपुर, खगड़िया और कटिहार जिलों से कुल ४६२ नाव मंगाई थी.बाद में स्थिति सामान्य होने पर इनमे से २८२ नाव तो नाव मालिकों को लौटा दी गयी.लेकिन भाड़े का भुगतान नाव मालिकों को नहीं किया गया था.दरअसल भाड़े की दर पर भी विवाद इसलिए उत्पन्न हो गया की वैशाली से भेजे गए नावों के लिए वाहन के लॉग बुक पर प्रति नाव प्रति दिन ३४० रूपये भाड़ा निर्धारित किया गया था जबकि मधेपुरा जिला प्रशासन ने मात्र ३८ रूपये प्रतिदिन की दर से भुगतान करना शुरू किया.इस पर नाव मालिकों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.हाई कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने मामले की छानबीन के लिए बाद के दौरान मधेपुरा के अपर समाहर्ता रहे राजेन्द्र राम की प्रतिनियुक्ति कर दी.मामले की अग्रतर छानबीन पर जिला प्रशासन के कान खड़े हो गए.पहले तो कुल १८० नाव गायब पाए गए.बाद में पूरे जिले से कुल ६५ नाव संदिग्ध अवस्था में बरामद किये गए.२५ अन्य बर्बाद हालत में थे.पर अब भी १०० नावों की स्थिति का पता नहीं है.यानी ये नाव प्रशासन की पहुँच से बाहर हो गए.भाड़े की राशि का मामला भी सुलझता नजर नहीं आ रहा है.
   एक बड़ा सवाल अब भी कायम है कि अगर इन नाव मालिकों को उचित  भाड़ा नहीं दिया जाता है,और लापता नावों का हर्जाना समय से नहीं भुगतान किया जाता है तो अगर फिर से आपदा जिले में आन पड़े तो  क्या ये नाव मालिक मधेपुरा प्रशासन को पूर्ण  सहयोग करेंगे? जो भी हो,मुद्दे को अगर समझदारी से नहीं सुलझाया गया तो अंत में भुगतना तो पड़ेगा आम जनता को ही.
कैसे पार लगेगी प्रशासन की नैया? कैसे पार लगेगी प्रशासन की नैया? Reviewed by Rakesh Singh on June 10, 2010 Rating: 5

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