आँखों का ऑपरेशन बना जिंदगी भर का नासूर



पंकज भारतीय /पूर्णिया/13 अप्रैल 2010
चले थे हरिभजन को,ओटन लगे कपास कुछ ऐसा ही हुआ उन ३८ लोगों के साथ जिन्होंने २४ जनवरी २००९ को क़स्बा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पूर्णिया) में अपनी आँखों का नि:शुल्क मोतियाबिंद ऑपरेशन करवाया था.अब एक साल से अधिक बीत चुके है और पीड़ित न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.
३८ लोगों में से ४ अब इस दुनिया में नहीं रहे और जो बचे है,उनमे से सभी आंशिक या पूर्ण रूप से अंधे होकर हर पल मौत जी रहे हैं.अब इनकी आँखें रौशन नहीं रही,यह दीगर बात है कि इनकी वजह से सरकारी बाबुओं की फ़ाइल के आंकड़े जरूर रौशन हो रहे हैं.सवाल आज भी कायम है कि बेबस और लाचार लोगों को अंधा बनाने वाले क़ानून के दायरे से बाहर क्यों हैं?
      दरअसल जनवरी २००९ में पूर्णिया जिला अंधापन नियंत्रण समिति ने एक गैर-सरकारी संगठन (सवेरा) के सहयोग से क़स्बा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पूर्णिया में मुफ्त ऑपरेशन शिविर का आयोजन करवाया था.यहाँ ऑपरेशन के बाद क़स्बा और जलालगढ़  प्रखंड के ३८ लोगों की आँखों की रौशनी पूर्ण या आंशिक रूप से चली गई.पीड़ित जगदेव महतो ने बताया कि उनके बाएं आँख का ऑपरेशन होना था जबकि ऑपरेशन कर डाला गया दाहिने आँख का. ऑपरेशन टेबुल पर जगदेव महतो ने आपत्ति दर्ज कराई तो डॉक्टर ने थप्पड़ से चुप करा दिया.आँख गवाने वाले अधिकाँश लोगों का कान ने भी अब साथ छोड़ दिया है.पीड़ितों में अधिकाँश लोग नारकीय जिंदगी बसर कर रहे हैं.
      राधे महतो कि जिंदगी रिक्शा के सहारे दौड़ रही थी.
( नि:शुल्क ऑपरेशन ने बनाया अँधा )

आँख गवाने के बाद कान से भी बहरे हो चुके हैं.रिक्शा चलाकर पूरे परिवार का पेट चलने वाले आज दाने-दाने को मोहताज हैं.जाहिर है राधे महतो की जिंदगी अब दौडती नहीं, रेंग रही है. ज्योति मंडल, सुरेन्द्र मंडल, सरला मसोमात जैसे दर्जनों नाम हैं जिनकी जिंदगी अब अभिशाप बन चुकी है.आँख और कान ने क्या साथ छोड़ा,अब अपनों ने भी साथ छोड़ दिया है.
( भिक्षाटन बना सहारा )          
कुछ पीड़ितों से जब अपनों ने मुंह मोड़ा तो भिक्षाटन को अपना सहारा बना लिया है.
      पीड़ितों ने जिलाधिकारी से लेकर मुख्य मंत्री तक गुहार लगाई लेकिन नतीजा सिफर ही निकला. काफी हो हंगामे के बाद जिला स्तर पर डाक्टरों की एक टीम बनी जिन्होंने पीड़ितों की आँख देखने के बाद निष्कर्ष के तौर पर कहा कि सभी लोगों की आँखे स्वस्थ हैं.जाहिर है कि डाक्टरों की टीम ने एक डाक्टर के आपराधिक कृत्य को ढंकने का प्रयास किया.असंतुष्ट पीड़ितों ने थक कर प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से गुहार लगाई लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हुई. ऐसा लगता है कि सुशासन में ऐसे लो-प्रोफाइल मामले टीआरपी के दृष्टिकोण से कोई मायने नहीं रखते हैं.पीड़ितों के सामने यक्ष प्रश्न आज भी है कि किसको सुनाएँ.......कौन सुनेगा......इसीलिये................?
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आँखों का ऑपरेशन बना जिंदगी भर का नासूर आँखों का ऑपरेशन बना जिंदगी भर का नासूर Reviewed by Rakesh Singh on April 12, 2010 Rating: 5

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